Saturday, March 12, 2011

"बहुजन हिताय बहुजन सुखाय"


-जनकवि स्व.कोदूराम" दलित "

प्रकृति हर पाँच तत्व सिरजिस
आगी  ,पानी भुइयाँ , अगास
अउ  पवन - एक  ले एक जबर
चंदा -  सुरुज चमकय- दमकयं
बरसय   बदरी   मल्हार   गाय
बहुजन हिताय बहुजन सुखाय.

फल अपन रुख मनमाँ मीठ-मीठ
सबला  खवायं  खुद  नहीं खायं
नदिया -  नरवा  फरिहर  पानी
जुच्छा  भूसां -   चारा      खाके
दे   बड़   बलकारी   दूध गाय
बहुजन हिताय बहुजन सुखाय.


तुलसी  हर  रचिस  रमायन  ला
भगवान  कृष्ण  -  भगवद गीता
ऋषि मुनि मन वेद पुरान शास्त्र
अउ रचिन सुकवि जन-मन कविता
सत धरम-करम के ये सब झन
सब किसम बताइन हें उपाय
बहुजन हिताय बहुजन सुखाय.

धरमी मन मठ मंदिर बनायं
बावली ,कुंवा,तरिया खनायं
उन भेद-भाव मानय न कभू
चाहे कोन्हों मन आयं-जायं
ये किसिम धरम के कारज मा
ओ मन लक्खों रूपया  लगायं
बहुजन हिताय बहुजन सुखाय.

फाँसी मा झूलिस भगत सिंह
होमिस परान  नेता  सुभाष
अउ गाँधी बबा अघात कष्ट
सहि-सहि के पाइस सरगवास
कतकोन बहादुर मरिन-मिटिन
तब ये सुराज ला सकिन लाय. 
बहुजन हिताय बहुजन सुखाय.

नेहरु जी देश-विदेश जायं
अउ पंचशील के गुण बतायं
"
सब कदम मिला के चलो,जियो-
अउ जियन देव"-कहि-कहि मनायं
ये किसम सिखो के महामंत्र
झगड़ा-रगड़ा दुरिहा करायं
बहुजन हिताय बहुजन सुखाय.

कतको ठन तीरथ नवा-नवा
अब हमर देश में बनत हव यं
जेला कोन्हों मन नाहर-बांध
कल-घर,बिजली-घर,घलो कहयं
ये तीरथ फल तत्काल देयं
 
ये सुबरन के बरखा  करायं
बहुजन हिताय बहुजन सुखाय


आचार्य विनोबा भावे-ह
पैदल जा-जाके गाँव-गाँव
मांगे भुइयां,धन,द्रव्य-दान
अउ  बांटत   जावय ठाँव-ठाँव
निच्चट सियान हो गे हे पर
कर्त्तव्य अपन वो करत जाय
बहुजन हिताय बहुजन सुखाय.

अब सहकारी खेती किसान
करिहीं, उपजाहीं गहूँ-धान
जुर मिल के सबो काम करिहीं
अउ सुखी सबो बनिहीं महान
हर गाँव-गाँव बन जाय स्वर्ग
हम करत हवन  येहीच उपाय
बहुजन हिताय बहुजन सुखाय.

पाए हन उत्तम नर-देही
पाए हन हम बल अउ अक्कल
पल भर में कठिन समस्या ला
चाहीं तो हम करथीं  हल
तौ आवव तन-मन-धन देके
नव भारत ला सुन्दर सजायं
बहुजन हिताय बहुजन सुखाय.

1 comment:

  1. भजन करो भोजन करो गाओ ताल तरंग।
    मन मेरो लागे रहे सब ब्लोगर के संग॥


    होलिका (अपने अंतर के कलुष) के दहन और वसन्तोसव पर्व की शुभकामनाएँ!

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