Wednesday, November 16, 2011

सिर्फ नाम ही रह जाना है


सहकारी सप्ताह पर आज भी प्रासंगिक
जनकवि स्व.कोदूराम “दलित” की कविता (छंद)

सहकारिता  से   बाँधा  बानर - भालू  ने सेतु
सहकारिता   का   यश  , राम  ने  बखाना  है
सहकारिता  से   ब्रजराज   ने  उठाया   गिरि
सहकारिता  का  यश  ,  श्याम ने  बखाना  है
सहकारिता से  लिया  गाँधी ने स्वराज्य आज
जिसके   सुयश  को   तमाम   ने   बखाना  है
उसी   सहकारिता  को  हमें  अपनाना है ‘औ’
अनहोना   काम   सिद्ध   करके  दिखाना   है.

तन – मन – धन  से यहाँ  का जन - जन अब
निरमाण  ही  के  पीछे  हो  गया  दीवाना है
बन   गये  ‘ भाखरा-भिलाई ’ से  नवीन तीर्थ
जिनसे   कि   मन - वांछित   फल  पाना   है.
चंद   बरसों   में  ही  चमक  उठा  देश   यह
मिला   इसे    जन – सहयोग   मनमाना   है
यहाँ  की   प्रगति   का   चमत्कार  देख , इसे
दुनियाँवालों ने  – ‘ एक  अचरज ’  माना  है.

पर  के   अधीन  रह     पिछड़ा  था  देश  यह
सहकारिता   से   इसे   आगे   को   बढ़ाना  है
‘ योजनाएँ ’  अपनी    सफल कर – कर   अब
उन्नति   के   श्रृंग   पर    इसको   चढ़ाना   है
अन्न – वस्त्र – घर  आदि  की समस्या हल कर
अविलम्ब  सारे   भेद - भाव  को  भगाना   है
क्रांति एक लाना है ‘औ’ गिरे को उठाना है ‘औ’
रोते  को  हँसाना है  ‘औ’  सोते को  जगाना है.

देने  का  समय  आया ,  देओ  दिल  खोल कर
बंधुओं  , बनो   उदार  ,  बदला   जमाना   है
देने   में   ही  भला है हमारा ‘औ’ तुम्हारा अब
नहीं - देना   याने    नयी - आफत   बुलाना है
देश   की   सुरक्षा   हेतु   स्वर्ण   देके आज  हमें
नये  -  नये   कई   अस्त्र  -  शस्त्र   मँगवाना  है
समय   को   परखो   ‘औ’  बनो भामाशाह अब
दाम   नहीं  ,   अरे  ,   सिर्फ नाम रह जाना है

Monday, November 14, 2011

वीर बालक



– जनकवि स्व.कोदूराम ”दलित”
 
उठ जाग हिंद के बाल वीर
तेरा भविष्य उज्जवल रे
मत हो अधीर, बन कर्मवीर
उठ जाग हिंद के बाल वीर.

रख भगतसिंह सा जिंदा दिल
तू देश विपद में बँटा हाथ
चल प्रिय चाचा नेहरू जी का
देशोन्नति में दे आज साथ.
तज दे आलस , कर श्रम कठोर
हर, दीन-हीन की कठिन पीर
उठ जाग हिंद के बाल वीर.

आजादी की रक्षा खातिर
मिट जाने को रह तैयार
कल को आने वाला है रे
तुझ पर स्वदेश का पूर्ण भार.
इसलिए अभी रे बालक
बन सच्चरित्र, बन समर धीर
उठ जाग हिंद के बाल वीर.

हिंदी काव्य संचय – जनकवि स्व.कोदूराम ”दलित”

 (सन 50 के दशक की रचना)

Sunday, October 2, 2011

बापू की स्मृति में

– जनकवि स्व.कोदूराम ”दलित”
 
             दोहा


जय-जय अमर शहीद जय, सुख-सुराज-तरु-मूल
तुम्हें  चढ़ाते  आज हम श्रद्धा  के  दो फूल.
उद्धारक माँ - हिंद के, जन - नायक, सुख-धाम
विश्व वंद्य बापू तुम्हें , शत् -शत् बार प्रणाम.

            
        चौपाई


जय जय राष्ट्र पिता अवतारी
जय निज मातृभूमि–भय हारी.
जय-जय सत्य अहिंसा -धारी
विश्व-प्रेम के   परम पुजारी.
जय टैगोर- तिलक अनुगामी
जय हरि-जन सेवक निष्कामी.
जय-जय कृष्ण भवन अधिवासी
जय महान , जय सद्गुण राशी.
जय-जय भारत भाग्य-विधाता
जय चरखाधर,जन दुख: त्राता.
जय गीता-कुरान –अनुरागी
जय संयमी ,तपस्वी,त्यागी.
जय स्वातंत्र्य -समर -सेनानी
छोड़ गये निज अमर कहानी.
किया देश हित जप-तप अनशन
दिया  ज्ञान  नूतन , नव जीवन.
तुमने घर-घर अलख जगाया
कर  दी  दूर  दानवी  माया.
बापू एक बार  फिर आओ
राम राज्य भारत में लाओ.
अनाचार - अज्ञान मिटाओ
भारत भू को स्वर्ग बनाओ.
बिलख रही अति  भारत माता
दुखियों का दु:ख सुना न जाता.

             दोहा

दीन-दलित नित कर रहे, देखो करुण पुकार
आओ मोहन हिंद में  , फिर लेकर अवतार.
विश्व विभूति, विनम्र वर,अति उदार मतिमान
नवयुग - निरमाता,विमल,समदरशी भगवान.

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Wednesday, September 28, 2011

छत्तीसगढ़ के जन-कवि स्व.कोदूराम "दलित" की 44वीं पुण्य-तिथि पर विशेष... -अरुण कुमार निगम

     कवि कोदूराम 'दलित' का जन्म ५ मार्च १९१० को ग्राम टिकरी(अर्जुन्दा),जिला  दुर्ग  में हुआ . आपके पिता श्री राम भरोसा कृषक थे.आपका बचपन ग्रामीण परिवेश में खेतिहर मजदूरों के बीच बीता. आपने मिडिल स्कूल अर्जुन्दा में प्रारंभिक  शिक्षा प्राप्त की . तत्पश्चात नार्मल स्कूल रायपुर , नार्मल स्कूल बिलासपुर में शिक्षा ग्रहण की  .स्काउटिंग,चित्रकला ,साहित्य विशारद में आपको सदैव उच्च स्थान प्राप्त हुआ .१९३१ से १९६७ तक आर्य कन्या गुरुकुल,नगर पालिका परिषद् तथा शिक्षा विभाग दुर्ग की प्राथमिक  शालाओं  में आप अध्यापक  और  प्रधान  अध्यापक के रूप  में कार्यरत  रहे .

ग्राम अर्जुंदा में आशु कवि श्री पीला लाल चिनोरिया जी से आपको काव्य-प्रेरणा मिली. आपने १९२६ में कवितायेँ लिखना प्रारंभ की. आपकी रचनाएँ अनेक समाचार पत्रों
एवं साहित्यिक पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रही हैं."सियानी गोठ"(१९६७) तथा "बहुजन हिताय-बहुजन सुखाय"(२०००) आपकी प्रकाशित पुस्तकें हैं.आपकी कविताओं तथा लोक कथाओं का प्रसारण आकाशवाणी भोपाल ,इंदौर, नागपुर, रायपुर से अनेक बार हुआ है.मध्य प्रदेश शासन  , सूचना-प्रसारण विभाग , म.प्र.हिंदी साहित्य अधिवेशन ,विभिन्न साहित्यिक सम्मलेन ,स्कूल-कालेज के स्नेह सम्मलेन, किसान मेला, राष्ट्रीय पर्व ,गणेशोत्सव के कई मंचों पर अपने काव्य पाठ किया है. सिंहस्थ मेला (कुम्भ) उज्जैन में भारत शासन  द्वारा आयोजित कवि सम्मलेन में महाकौशल क्षेत्र से कवि के रूप में आप आमंत्रित किये गए. राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री के नगर आगमन पर अपने काव्यपाठ किया है.

आप राष्ट्र भाषा प्रचार समिति वर्धा
, इकाई -दुर्ग के सक्रिय सदस्य  रहे .दुर्ग जिला साहित्य समिति के उपमंत्री, छत्तीसगढ़ साहित्य के उपमंत्री, दुर्ग जिला हरिजन सेवक संघ के मंत्री, भारत सेवक समाज के सदस्य,सहकारी बैंक दुर्ग  के एक डायरेक्टर ,म्यु.कर्मचारी सभा नं.४६७, सहकारी बैंक के सरपंच, दुर्ग नगर प्राथमिक शिक्षक संघ के कार्यकारिणी सदस्यशिक्षक नगर समिति के सदस्य जैसे विभिन्न पदों पर सक्रिय रहते हुए आपने अपने बहु आयामी व्यक्तित्व से राष्ट्र एवं समाज के उत्थान के लिए सदैव कार्य किया है.

आपका हिंदी और छत्तीसगढ़ी साहित्य में गद्य और पद्य दोनों पर सामान अधिकार
रहा है. साहित्य की सभी विधाओं यथा कविता, गीत, कहानी ,निबंध, एकांकी, प्रहसन, बाल-पहेली, बाल-गीत, क्रिया-गीत    में आपने रचनाएँ की है. आप क्षेत्र विशेष में बंधे नहीं रहे. सारी सृष्टि ही आपकी विषय-वस्तु रही है. आपकी रचनाएँ आज भी प्रासंगिक हैं. आपके काव्य ने  उस  युग  में जन्म लिया  जब  देश  आजादी  के लिए संघर्षरत  था .आप समय की साँसों की धड़कन को पहचानते थे .  अतः आपकी रचनाओं में देश-प्रेम ,त्याग, जन-जागरण, राष्ट्रीयता की भावनाएं युग अनुरूप हैं.आपके साहित्य में नीतिपरकता,समाज सुधार की भावना ,मानवतावादी, समन्वयवादी तथा प्रगतिवादी दृष्टिकोण सहज ही परिलक्षित होता है.

हास्य-व्यंग्य आपके काव्य का मूल स्वर है जो शिष्ट और प्रभावशाली है. आपने रचनाओं में मानव का शोषण करने वाली परम्पराओं का विरोध कर
आधुनिक, वैज्ञानिक, समाजवादी और प्रगतिशील  दृष्टिकोण से दलित और शोषित वर्ग का प्रतिनिधित्व किया है. आपका नीति-काव्य तथा बाल-साहित्य  एक आदर्श ,कर्मठ  और सुसंस्कृत  पीढ़ी के निर्माण  के लिए आज भी प्रासंगिक है.

कवि दलित की दृष्टि में कला का आदर्श
  'व्यवहार विदेन होकर  'लोक-व्यवहार उद्दीपनार्थम' था. हिंदी और छत्तीसगढ़ी दोनों ही रचनाओं  में भाषा परिष्कृत, परिमार्जित, साहित्यिक और व्याकरण सम्मत है. आपका शब्द-चयन असाधारण है. आपके प्रकृति-चित्रण में भाषा में चित्रोपमता,ध्वन्यात्मकता के साथ नाद-सौन्दर्य के दर्शन होते हैं. इनमें शब्दमय चित्रों का विलक्षण प्रयोग हुआ है. आपने नए युग में भी तुकांत और गेय छंदों को अपनाया है. भाषा और उच्चारण पर आपका अद्भुत अधिकार रहा है.कवि श्री कोदूराम "दलित" का निधन २८ सितम्बर १९६७ को हुआ.





 
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Friday, September 23, 2011

गो - वध बंद करो


– जनकवि स्व.कोदूराम ”दलित”

गो-वध बंद करो जल्दी अब, गो-वध बंद करो
भाई ! इस स्वतंत्र भारत में, गो-वध बंद करो.

महापुरुष उस बाल कृष्ण का, याद करो तुम गोचारण
नाम पड़ा गोपाल कृष्ण का, याद करो तुम किस कारण
माखन-चोर उसे कहते हो, याद करो तुम किस कारण
जग-सिर-मौर उसे कहते हो, याद करो तुम किस कारण.

मान रहे  हो  देव तुल्य, उससे तो तनिक डरो
गो-वध बंद करो जल्दी अब, गो-वध बंद करो.

समझाया ऋषि दयानंद ने, गो-वध भारी पातक है
समझाया बापू ने गो-वध, राम राज्य का घातक है
सब जीवों को स्वतंत्रता से, जीने का पूरा हक है
नर-पिशाच अब उनकी निर्मम हत्या करते नाहक है.

सत्य-अहिंसा का अब तो, जन-जन में भाव भरो
गो-वध बंद करो जल्दी अब, गो-वध बंद करो.

जिस माता के बैलों द्वारा,अन्न-वस्त्र तुम पाते हो
जिसके दही-दूध-मक्खन से, बलशाली बन जाते हो
जिसके बल पर रंगरलियाँ करते हो,मौज उड़ाते हो
अरे ! उसी माता की गर्दन पर तुम छुरी चलाते हो.

गो-हत्यारों ! चुल्लू भर पानी में तुम डूब मरो
गो-वध बंद करो जल्दी अब, गो-वध बंद करो.

बहती थी जिस पुण्य भूमि पर, दही-दूध की सरितायें
आज वहीं निधड़क कटती है, दीन-हीन लाखों गायें
कटता है कठोर दिल भी, सुन उनकी दर्द भरी आहें
आज हमारी अपनी यह , सरकार जरा कुछ शरमाये.

पुण्य-शिखर पर चढ़ो, पाप के खंदक में न गिरो
गो-वध बंद करो जल्दी अब, गो-वध बंद करो.

आज यहाँ के शासक, निष्ठुर म्लेच्छ यवन क्रिस्तान नहीं
आज यहाँ पर किसी और की, सत्ता नहीं - विधान नहीं
आज यहाँ  सब कुछ है अपना,पर गौ का कल्याण नहीं
गो-वध रोके कौन ! तनिक, इस ओर किसी का ध्यान नहीं

गो-रक्षा, गो - सेवा कर , भारत का कष्ट हरो
गो-वध बंद करो जल्दी अब, गो-वध बंद करो.

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Wednesday, September 21, 2011

रहे न कोई भूखा – नंगा


– जनकवि स्व.कोदूराम ”दलित”

पराधीन रहकर सरकस का
शेर नित्य खाता है कोड़े
पराधीन रहकर बेचारे
बोझा ढोते हाथी-घोड़े.

माता – पिता छुड़ा, पिंजरे में
रखा गया नन्हा –सा तोता
वह स्वतंत्र उड़ते तोतों को
देख सदा मन ही मन रोता.

चाहे पशु हो, चाहे पंछी
परवशता कब , किसको भायी
कहने का मतलब यह कि
परवशताहोती दुख:दायी.

ऐसी दुख:दायी परवशता
मानव को कैसे भायेगी ?
औरों की दासता किसी को
राहत कैसे पहुँचायेगी ?

जो गुलामहैं, उन लोगों से
उनके दुख: की बातें पूछो
हैं जो आजाद मुल्क के
उनके सुख की बातें पूछो.

कहा सयानों ने सच ही है
आजादी से जीना अच्छा
किंतु गुलामी में जिंदा,
रहने से मर जाना है अच्छा .

रह करके गोरों की परवशता में
हम क्या-क्या न खो चुके
पर पंद्रह अगस्त सन सैंतालीस को
हम आजाद हो चुके.

यह सब अपने अमर शहीदों के
भारी जप-तप का फल है.
मिलकर रहें, देश पनपावें
तब तो फिर भविष्य उज्जवल है.

आजादी पर आँच न आवे
लहर-लहर लहराय तिरंगा
हम संकल्प आज लेवें कि
रहे न कोई भूखा – नंगा.

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