होले तिहार बड़ निक लागे
सबके मन -मा उमंग जागे.
समधिन मारे पिचकारी,
समधी ला बड़ सुख-सुख लागे.
आमा मऊँरिन,परसा मन ,पहिरिन केसरिया हार
जाड़-घाम दुन्नो चल देइन अपन-अपन ससुरार.
का बस्ती,का वन-उपवन,कण -कण मा खुशिहाली छागे.
नंदू नंगत नगाड़ा पीटय ,फगुवा गावै फाग
धन्नू ढोल,मंजीरा मन्नू,झंगलू झोंके राग.
सररर सराईस सरवन हर ,सब्बो डौकी शरमागे.
मंगलू घर के नवा मंडलिन ,घिव- मा बरा पकाय
जी छुट्टा मंगलू मंडल हर , चोरा- चोरा के खाय.
जब मंडलिन गुरेरे आँखी , तब बारी कोती भागे.
अच्छा मनखे दूध पियें ,घिनहा मन मदिरा भंग
छेना लकड़ी झटक झटक के , करें सबो ला तंग.
टोरें छानी -छप्पर ला , ईंकर मारे जी उकतागे.
अच्छा मनखे मन होले के , गावें सुन्दर गीत
घिनहा मनखे बकें बुकावें,करें गजब अनरीत.
समझावब मा इन्हला ,संत महात्मा घलो हार खागे.
अच्छा मनखे मन बड़ सुन्दर ,खेलें रंग गुलाल
घिनहा मन धुर्रा ला सींचें , सबके करें बेहाल.
छोड़ो अनरित भइया हो रे , नवा जमाना अब आगे.
- कोदू राम "दलित"
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