-जनकवि स्व.कोदूराम ”दलित”
गुरु, पितु, मातु, सुजन,भगवान,
ये पाँचों हैं पूज्य महान
गुरु का है सर्वोच्च स्थान ,
गुरु है सकल गुणों की खान.
कर अज्ञान तिमिर का नाश,
दिखलाता यह ज्ञान-प्रकाश
रखता गुरु को सदा प्रसन्न ,
बनता वही देश सम्पन्न.
कबिरा, तुलसी, संत-गुसाईं,
सबने गुरु की महिमा गाई
बड़ा चतुर है यह कारीगर ,
गढ़ता गाँधी और जवाहर.
आया पावन पाँच-सितम्बर ,
श्रद्धापूर्वक हम सब मिलकर
गुरु की महिमा गावें आज ,
“ शिक्षक-दिवस ” मनावें आज.
एकलव्य – आरुणि की नाईं ,
गुरु के शिष्य बने हम भाई
देता है गुरु विद्या – दान ,
करें सदा इसका सम्मान.
अन्न –वस्त्र –धन दें भरपूर ,
गुरु के कष्ट करें हम दूर
मिल जुलकर हम शिष्य–सुजान ,
करें राष्ट्र का नवनिर्माण.
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सही लिखा है आपने, गुरु बिना ज्ञान नहीं| धन्यवाद|
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