Sunday, December 12, 2010

"कवित्त" - -कोदूराम "दलित"


"कवित्त"
बन  -  मन   आयं    बड़   हितुवा    हमार
बन-मन के बखान ,करे  जाय नहीं भइया .
बन - मा  रहिस  -  चउदा  बछर  राम कभू
मधुबन  -  मा  रहिस   किसन   कन्हइया .
बन  -  मा बसय रिखि मुनि अउ बानप्रस्थ
ज्ञानी  -  ध्यानी   अउ जप-तप के करइया.
बन - मा रहिस   महामुनि  बालमिकि  हर
जग   के    तारक    रमायन   के   रचइया .

बन - मा  केउ  किसिम  अपने-अपन जामे
जम्मो   रुख-रई  मन  होथैं   बड़  काम   के .
सइगोन  ,सरई  , खम्हार कर्रा,साजा,बीजा
खिरसाली , बाँस , सल्हिया चिरई  जाम के .
धौंरा तिलसा ,   सेनहा  ,   भिरहा    बोइर
मकोइया,मूढ़ी,मोदे,कलमीं,गिन्दोल आम के.
औरां , हर्रा, ,बेहरा  , डूमर , चार , तेंदू कुर्रु
कौहां  मौंहा, खैर,गस्ती , बेल , कैथा नाम के .
सुरता भुलावौ झन  परसा, कुसुम  धनबहार
सेम्हर-रियाँ            रोहिना  -  तमाम     के.

बन - मा रहयं ,    किजरयं  ,खायं   अलमस्त
मलागर  ,    मांचाडेवाँ     बिज्जू    बनबिलवा.
कोल्हिया , खेखर्री हुंड़रा  , बरहा ,  बनभैंसा
रेड़वा गवर  ,    ढुलबेंदरा   ,   अउ    भलुवा.
बाराडेरिहा  ,  साम्हर  , चीतर  , चैरेंग रोज
साई कुकरी , हरिन  ,   कोटरी  अउ    लिलवा.
खरहा , मंजूर करसायल  अउ  सिंह   गेंडा  ,
हाथी - हथनिन  ,    सोन  कुकुर  के   पिलवा .

बन के बिरिच्छ  मन,जड़ी - बूटी,कांदा-कुसा
फल - फूल ,लकड़ी  अउ  देयं डारा -पाना जी .
हाड़ा - गोड़ा , माँस -चाम,चरबी,सुरा के बाल
मौहां    मंजूर पाँखी   देय    मनमाना जी .
लासा , कोसा  , मंदरस  ,तेल बर  बीजा देयं
जभे  काम पड़े  ,  तभे   जंगल  में  जाना जी .
बाँस ,ठारा , बांख ,कोयला , मयाल कांदी
खादर , ला -ला के तुम  काम  निपटाना  जी.

                  -कोदूराम "दलित"

Friday, December 10, 2010

"होले-तिहार" - कोदू राम "दलित"

"होले-तिहार"

होले तिहार बड़ निक लागे
सबके मन -मा उमंग जागे.
समधिन मारे पिचकारी,
समधी ला बड़ सुख-सुख लागे.

आमा मऊँरिन,परसा मन ,पहिरिन केसरिया हार
जाड़-घाम दुन्नो चल देइन   अपन-अपन ससुरार.
का बस्ती,का वन-उपवन,कण -कण मा खुशिहाली छागे.

नंदू नंगत नगाड़ा पीटय ,फगुवा गावै फाग
धन्नू ढोल,मंजीरा मन्नू,झंगलू झोंके राग.
सररर  सराईस  सरवन  हर ,सब्बो  डौकी   शरमागे.

मंगलू घर के नवा मंडलिन ,घिव- मा बरा पकाय
जी छुट्टा  मंगलू  मंडल  हर , चोरा- चोरा  के खाय.
जब  मंडलिन  गुरेरे  आँखी  , तब  बारी  कोती भागे.

अच्छा मनखे दूध पियें ,घिनहा मन मदिरा भंग
छेना लकड़ी  झटक झटक के , करें सबो ला तंग.
टोरें   छानी  -छप्पर  ला , ईंकर मारे   जी  उकतागे.

अच्छा मनखे मन  होले के , गावें सुन्दर गीत
घिनहा मनखे बकें बुकावें,करें गजब अनरीत.
समझावब मा  इन्हला ,संत महात्मा घलो हार खागे.

अच्छा मनखे मन बड़ सुन्दर ,खेलें रंग गुलाल
घिनहा मन  धुर्रा ला  सींचें  , सबके करें बेहाल.
छोड़ो  अनरित  भइया हो रे , नवा जमाना अब आगे.


                  - कोदू राम "दलित"

Friday, December 3, 2010

बसंत बहार -- कोदूराम "दलित"

बसंत बहार

हेमंत गइस जाड़ा भागिस ,आइस सुख के दाता बसंत
जइसे सब-ला सुख देये बर जाथे कोन्हो साधु-संत.

बड़ गुनकारी अब पवन चले,चिटको जियानय जाड़ घाम
ये ऋतु-माँ सुख  पाथयं अघात, मनखे अउ पशु-पंछी तमाम.

जम्मो नदिया-नरवा मन के,पानी होगे निच्चट फरियर
अउ होगे सब रुख-राई के , डारा -पाना हरियर-हरियर.

चंदा मामा बाँटयं चाँदी अउ सुरुज नरायन देय सोन
इनकर साहीं पर-उपकारी,तुम  ही बताव अउ हव कोन ?
बन,बाग,बगइचा लहलहायं  ,झूमय  अमराई-फुलवारी
भांटा  ,भाजी ,मुरई ,मिरचा-मा , भरे हवय मरार-बारी.

बड़ सुग्घर फूले लगिन फूल,महकत हें-मन-ला मोहत हें
मंदरस   के माँछी  रस ले के,छाता-मा अपन संजोवत हें.

सरसों ओढिस पींयर चुनरी,झुमका- झमकाये हवयं चार
लपटे-पोटारे रुख  मन-ला, ये  लता-नार  करथयं  दुलार.

मउरे-मउरे  आमा  रुख-मन ,दीखयं अइसे   दुलहा -डउका
कुलकय,फुदकय,नाचय,गावय,कोयली गीत ठउका-ठउका.

बन के परसा मन  बाँधे हें,बड़ सुग्घर केसरिया फेंटा
फेंटा- मा कलगी खोंचे   हें,     दीखत हें राजा के बेटा.

मोती कस टपकयं महुआ मन,बनवासी बिनत-बटोरत हें
बेंदरा  साहीं  चढ़  के रुख -  मा  गेदराये  तेंदू  टोरत  हें.

मुनगा फरगे,बोइर झरगे,पाकिस  अँवरा ,झर गईस जाम
"फरई - झरई  , बरई - बुतई"   जग  में  ये होते रथे  काम.

लुवई  -मिंजई  सब्बो हो गे  अउ  धान  धरागे  कोठी-मा
बपुरा कमिया राजी रहिथयं  ,बासी- मा अउर लंगोटी- मा.

अब कहूँ,चना,अरसी,मसूर के भर्री   अड़बड़  चमकत हें
बड़ नीक चंदैनी  रात लगय डहँकी  बस्ती-मा झमकत हें.

ढोलक बजायं ,दादरा गायं, गायं ठेलहा-मा दाई- माई  मन
ठट्ठा,गम्मत अउ काम-बुता,सब करयं  ननद-भउजाई मन.

कोन्हों मन खेत जायं अउ बटुरा-फली लायं भर के झोरा
अउ कोन्हों लायं  गदेली    गहूँ - चना  भूँजे खातिर होरा.

अब चेलिक-मोटियारिन  मन के,खेले-खाए के दिन आइस
डंडा - फुगड़ी  अउ  रिलो - फाग , नाचे-गाये के दिन आइस.

गुन,गुन,गुन,गुन करके भउंरा मन, गुन बसंत के गात हवयं 
अउ रटयं 'राम-धुन' सूवा मन,कठखोलवा ताल बजात हवयं .

कवि मन के घलो कलम चलगे,बिन लोहा के नाँगर साहीं,
अउहा -तउहा  लिख डारत  हें,जे  मन  में  भाय कुछू कांही.

होले  तिहार अब त हवय ,  हम एक रंग    रंग जाबो   जी,
"हम एक हवन,हम नेक हवन" दुनिया  ला आज बताबो जी.

एकर कतेक गुन गाई हम,ये ऋतु के महिमा हे अनंत
आथय सबके जिनगानी- मा, गर्मी,बरखा,जाड़ा,बसंत.
                                                     - कोदूराम "दलित"