– जनकवि स्व.कोदूराम ”दलित”
कवि पैदा होकर आता है
होती कवियों की खान नहीं
कविता करना आसान नहीं.
कविता कर सके सूर तब , जब अपनी दोनों आँखें फोड़ी
कविता कर सके संत तुलसी , जब अपनी प्रिय रत्ना छोड़ी
कविता कर सके कबीर कि जब झीनी-झीनी चादर ओढ़ी
दे गये जगत को अमर काव्य , जब त्याग-तपस्या की थोड़ी.
युग-युग तक कभी भूल सकता
मानव इनका एहसान नहीं
कविता करना आसान नहीं.
वह तरकस क्या ? जिसमें कि एक भी, जन-मन भेदी बाण नहीं
वह कोठी भूसा – भरी व्यर्थ , जिसमें दो दाना धान नहीं
उसको सागर कहना फिजूल , जिसमें लहरें – तूफान नहीं
वह कविता क्या जिसमें, युग-परिवर्तन-बल उच्च उड़ान नहीं.
वह कवि क्या जिसे कि
सत्यम् शिवम् सुंदरम् का हो भान नहीं
कविता करना आसान नहीं.
***************************************************
No comments:
Post a Comment