Tuesday, September 20, 2011

श्रम का सूरज (छंद)


– जनकवि स्व.कोदूराम ”दलित”

श्रम का सूरज उगा, बीती विकराल रात,
भागा घोर तम, भोर हो गया सुहाना है.
आलस को त्याग–अब जाग रे श्रमिक, तुझे
नये सिरे से नया भारत सिरजाना है.
तेरे बल- पौरुष की होनी है परीक्षा अब
विकट कमाल तुझे करके दिखाना है.
आया है सृजन-काल, जाग रे सृजनहार,
जाग कर्मवीर, जागा सकल जमाना है.

फावड़ा-कुदाल, घन-सब्बल सम्हाल, उठ
निरमाण-कारी, तुझे जंग जीत आना है.
फोड़ दे पहाड़, कर पाषाणों को चूर-चूर
खींच ले खनिज, माँग रहा कारखाना है.
रोक सरिता का जल, प्यासी धरती को पिला
इंद्र का बगीचा तुझे यहीं पै लगाना है.
ऊसर मरू-भूमियों का सीना चीर ! तुझे
अन्न उपजाना है भूखों को खिलाना है.

जाग रे भगीरथ- किसान, धरती के लाल,
आज तुझे ऋण मातृ भूमि का चुकाना है.
आराम-हरामवाले मंत्र को न भूल,तुझे
आजादी की गंगा’ , घर-घर पहुँचाना है.
सहकारिता से काम करने का वक्त आया
कदम मिला के अब चलना – चलाना है.
मिल जुल कर उत्पादन बढ़ाना  है
एक-एक दाना बाँट-बाँट कर खाना है.

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