-जनकवि स्व.कोदूराम "दलित"
जउने चाहू होही , दू - दू हाथ तो लगाव
पढ़ लिख के भैया ! बने नाम ला कमाव.
गुरूजी मन ला सदा सब किसम, खुश राखत तुम जाव
छै से ग्यारा बारिस भीतर के , सब लइका पढ़वाव
टूरा हो के टूरी सब ला , ज्ञानी - गुनी बनाव
किसिम-किसिम के चिजबस गढ़ना, संगे सँग सिखवाव.
बनैं कमाई पूत , सबो झन अइसन जुगुत जमाव
पढ़ लिख के भैया ! बने नाम ला कमाव.
पढ़े लिखे बर जाव - गुन सीखे बर जाव
पढ़ लिख के भैया ! बने नाम ला कमाव.
अपन गाँव मा शाला - भवन , जुरमिल के बनाव
ओकर हाता के भितरी मा , कुँआ घलो खनाव
फुलवारी अउ रुख लगाके , अच्छा बने सजाव
सुन्दर - सुन्दर पोथी - पुस्तक , बाँचे बर मंगवाव.
पढ़ लिख के भैया ! बने नाम ला कमाव.
अपन गाँव मा शाला - भवन , जुरमिल के बनाव
ओकर हाता के भितरी मा , कुँआ घलो खनाव
फुलवारी अउ रुख लगाके , अच्छा बने सजाव
सुन्दर - सुन्दर पोथी - पुस्तक , बाँचे बर मंगवाव.
जउने चाहू होही , दू - दू हाथ तो लगाव
पढ़ लिख के भैया ! बने नाम ला कमाव.
गुरूजी मन ला सदा सब किसम, खुश राखत तुम जाव
छै से ग्यारा बारिस भीतर के , सब लइका पढ़वाव
टूरा हो के टूरी सब ला , ज्ञानी - गुनी बनाव
किसिम-किसिम के चिजबस गढ़ना, संगे सँग सिखवाव.
बनैं कमाई पूत , सबो झन अइसन जुगुत जमाव
पढ़ लिख के भैया ! बने नाम ला कमाव.
कोदू राम दलित जी की प्रेरक रचना प्रस्तुत करने के लिए आभार।
ReplyDelete