-जनकवि स्व.कोदूराम "दलित"
परमेश्वर कइसन दिन आइस ,का कलजुग सिरतोन खराइस
पापिन – चण्डालिन महँगाई , हम गरीब – गुरबा ला खाइस
कइसे करके पाली –पोसी डउकी – लइका , कुटुम – कबीला
कब तक हम बड़हर मन के , देखत रहीं चरित्तर –लीला
अड़बड़ मुसकिल होगे हमला , पाये खातिर रोजी - रोटी
निठुर मनन के करना परथै ,गजब किलौली ,पाँव –पलौटी
बड़े बिहिनिया ले संझा तक , माई – पीला जाँगर पेरीं
पापी पेट भरे खातिर हम , गारी खाथीं घेरी - बेरी
पसिया - पेज ,कभू तिउँरा के ,ठोम्हा भर घुघरी हम खाईं
होगे हमर पुनस्तर ढीला , काकर मेर जाके गोहराईं
लइका मन हमार लुलवाथें , पाये बर कोंढ़ा के रोटी
खेत - खार में जाके खाथैं , उरिद - मुंगेसा अऊ चिरपोटी
लाँघन - भूखन मरथीं हम्मन , ओमन माल-मलीदा खाथैं
मरकी अउर कुढ़ेरा साहीं , उनकर पेट बड़े हो जाथैं
हमर सिरागे रुँजी-पूँजी , ऊँकर मन के भरगै थैला
हम्मन अनपढ़ ,लेड़गा - कोंदा,बने हवन घानी कस बैला
कब सुराज के सुख ला पाबो ,कब मिलिही भुइयाँ घर कुरिया
कब हमार मन के दिन फिरही ,कब तक रहिबो दुरिहा-दुरिहा
निच्चट कुकुर - बिलाई साहीं , कब तक ले ठुकरायें जाबो
ठगरा मन सब ठगतेच जाथैं,कब तक इनला बड़े बनाबो
जर जावै अइसन जिनगानी ,जम्मो झिन ला जउन अखरगे
का ? हमार बर देउँता-धामी , घलो रूठिन कि पट ले मरगें
कब तक हम भरमाये जाबो,कब तक कहिबो ‘किस्मत खोटी’
बीता भर चिरहा -फरिहा के , कब तक रही हमार लिंगोटी
स्व: कोदू राम "दलित" जी की रचना पढवाने के लिए धन्यवाद|
ReplyDeleteबेहद उत्कृष्ट रचना है यह.
ReplyDeleteआपको मेरी हार्दिक शुभकामनायें