-जनकवि कोदूराम "दलित"
अपन देश आजाद करे बर , चलो जेल संगवारी,
कतको झिन मन चल देइन ,आइस अब हमरो बारी.
जिहाँ लिहिस अउंतार कृष्ण हर,भगत मनन ला तारिस
दुष्ट मनन-ला मारिस अऊ भुइयाँ के भार उतारिस
उही किसम जुरमिल के हम गोरा मन - ला खेदारीं
अपन देश आजाद करे बर , चलो जेल संगवारी.
कृष्ण- भवन- मां हमू मनन, गाँधीजी सांही रहिबो
कुटबो उहाँ केकची तेल पेरबो, सब दु:ख सहिबो
चाहे निष्ठुर मारय - पीटय , चाहे देवय गारी.
अपन देश आजाद करे बर , चलो जेल संगवारी.
बड़ सिधवा बेपारी बन के , हमर देश मां आइस
हमर - तुम्हर मां फूट डार के , राज - पाट हथियाइस .
अब सब झन मन जानिन कि ये आय लुटेरा भारी
अपन देश आजाद करे बर , चलो जेल संगवारी.
देख लिहिस जब हमर तुम्हर कमजोरी अऊ ढिलाई
मुसवा साहीं बघवा- मन ला चपकिस भूरी बिलाई
अभी भागिही,सब्बो झिन मिल के ओला ललकारीं
अपन देश आजाद करे बर , चलो जेल संगवारी.
काम-बूता सब छोड़ इंकर ,अब एक बात सुन लेवव
माते ह्वय लड़ाई ते माँ , मदद कभू झिन देवव
इनकर पाछू पड़ जावो , धर -धर के तेज तुतारी
अपन देश आजाद करे बर , चलो जेल संगवारी.
उनकर मन के बम ,बन्दूक ,तोप ,लौड़ी अऊ डंडा
सब हमार सत्याग्रह के , आगू पड़ जाही ठंडा .
होवत हें बलिदान देश खातिर कतको नर - नारी
अपन देश आजाद करे बर , चलो जेल संगवारी.
अपन देश आजाद करे बर , चलो जेल संगवारी,
कतको झिन मन चल देइन ,आइस अब हमरो बारी.
जिहाँ लिहिस अउंतार कृष्ण हर,भगत मनन ला तारिस
दुष्ट मनन-ला मारिस अऊ भुइयाँ के भार उतारिस
उही किसम जुरमिल के हम गोरा मन - ला खेदारीं
अपन देश आजाद करे बर , चलो जेल संगवारी.
कृष्ण- भवन- मां हमू मनन, गाँधीजी सांही रहिबो
कुटबो उहाँ केकची तेल पेरबो, सब दु:ख सहिबो
चाहे निष्ठुर मारय - पीटय , चाहे देवय गारी.
अपन देश आजाद करे बर , चलो जेल संगवारी.
बड़ सिधवा बेपारी बन के , हमर देश मां आइस
हमर - तुम्हर मां फूट डार के , राज - पाट हथियाइस .
अब सब झन मन जानिन कि ये आय लुटेरा भारी
अपन देश आजाद करे बर , चलो जेल संगवारी.
देख लिहिस जब हमर तुम्हर कमजोरी अऊ ढिलाई
मुसवा साहीं बघवा- मन ला चपकिस भूरी बिलाई
अभी भागिही,सब्बो झिन मिल के ओला ललकारीं
अपन देश आजाद करे बर , चलो जेल संगवारी.
काम-बूता सब छोड़ इंकर ,अब एक बात सुन लेवव
माते ह्वय लड़ाई ते माँ , मदद कभू झिन देवव
इनकर पाछू पड़ जावो , धर -धर के तेज तुतारी
अपन देश आजाद करे बर , चलो जेल संगवारी.
उनकर मन के बम ,बन्दूक ,तोप ,लौड़ी अऊ डंडा
सब हमार सत्याग्रह के , आगू पड़ जाही ठंडा .
होवत हें बलिदान देश खातिर कतको नर - नारी
अपन देश आजाद करे बर , चलो जेल संगवारी.
जन कवि स्व.कोदूराम जी को नमन .
ReplyDeleteमेरे नाना जी स्व.श्यामचरण सिंह जी उनके मित्र थे.
उनकी कविता प्रस्तुत करने के लिये.... हार्दिक धन्यवाद एवं आभार।