Tuesday, April 19, 2011

हे गजानन....

-जनकवि कोदूराम "दलित"

हाथी साहीं तव सूँड़-मूड़,सब तन मनखे जस गणेश 
हे रूप,मंगल स्वरूप, बड़ अजगुत लगे तोर भेष.

हे गिरिजा सुत ! हम गिरे अऊर पद दलित मनन ला अब सम्हाल
सिन्दूर बदन ! स्वाधीन हिंद के ,जन-जन ला कर लाल-बाल.

हे लम्बोदर ! अब हमर उदर पाले खातिर दे दू रोटी
हे पीताम्बरधारी अब तो दे लाज ढँके बर लंगोटी

मूषक वाहन ! बड़हर मन हम ला चपके हें मुसवा साहीं
चुहकिन सब रसा हमार अउर अब हाड़ा-गोड़ा खाहीं .

हे गजानन ! दू गज भुइयाँ तक नइये आज हमार करा  
'मिलही खेती-बारी-घर' ये कइथें कतको झन मिठलबरा .

हर के सपूत ! हर हमार देश के,दुःख दारिद,अज्ञान आज
फरसाधारी ! कर साफ फरेबी मनला, बचा हमार लाज.

हे गणनायक ! किरपा करके 'गणतंत्र' सफल करदे हमार
हे एकदंत ! अब एक बरन कर दे बाम्हन ,बनिया,चमार.

हे दीनबंधु ! हम दीन दलित मनके  सुनके सकरुण पुकार
हे अशरण-शरण दयालु देव ! अब आके हमला तहीं तार .

हे बिघन -हरन ! हर बिघन सबो,हे सिद्ध-सदन ! कर सिद्ध काम
हे मोदक प्रिय ,जग वन्दनीय ,शत-शत प्रणाम,शत-शत प्रणाम .

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