Tuesday, August 14, 2012

“अमर हो स्वाधीनता”

जनकवि स्व.कोदूराम ”दलित”

हिंद का स्वर्णिम परब, ‘पंद्रह अगस्तपुनीत आया
नव-उमंगें  , नव-तरंगें    सुभग नव-संदेश लाया ||

आज ही नूतन हुआ था, बदल कर इतिहास अपना
आज ही के दिन हमारा, था हुआ साकार सपना ||

आज ही टूटे थे बंधन, पर-वशा माँ –भारती के
आज ही हर घर जले थे, जगमगाते दीप घी के ||

आज ही के दिन हटे थे, विवश होकर के फिरंगी
आज ही नव-ललित ,लहराई पताका थी तिरंगी ||

आज ही के दिन खिली थी, उन शहीदों की सु-टोली
खिल उठा था बाग जलियाँ, खिल उठी थी बारडोली ||

आज जनता  हिंद की ,  मन में नहीं  फूली समाती
आज तिलक, सुभाष, गाँधी के सुमंगल गान गाती ||

आज अपने देश का ,  होगा  यही  बस एक नारा:-
“अमर हो स्वाधीनता” – फूले-फले भारत हमारा ||

शीघ्र कर दें दूर मिलकर, हिंद की सारी व्यथाएँ
प्रेरणा  देती  रहें  ,  हमको  शहीदों  की  कथाएँ ||

-जनकवि स्व.कोदूराम “दलित”

2 comments:

  1. बहुत ही उद्देश्य पूर्ण राष्ट्रीयता का अलख जगाती इस रचना को नमन

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  2. देश प्रेम के गीत ला, गाइस हिन्दुस्तान
    बने बताए गा दलित, छंद राग के ज्ञान।

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