जनकवि स्व.कोदूराम ”दलित”
हिंद का स्वर्णिम
परब, ‘पंद्रह अगस्त’पुनीत आया
नव-उमंगें , नव-तरंगें – सुभग
नव-संदेश लाया ||
आज ही नूतन हुआ था, बदल कर इतिहास
अपना
आज ही के दिन
हमारा, था हुआ साकार सपना ||
आज ही टूटे थे
बंधन, पर-वशा माँ –भारती के
आज ही हर घर जले
थे, जगमगाते दीप घी के ||
आज ही के दिन हटे
थे, विवश होकर के फिरंगी
आज ही नव-ललित ,लहराई पताका थी
तिरंगी ||
आज ही के दिन खिली
थी, उन शहीदों की सु-टोली
खिल उठा था बाग
जलियाँ, खिल उठी थी बारडोली ||
आज जनता हिंद की , मन में नहीं फूली समाती
आज तिलक, सुभाष, गाँधी के सुमंगल
गान गाती ||
आज अपने देश का , होगा यही
बस एक नारा:-
“अमर हो स्वाधीनता”
– फूले-फले भारत हमारा ||
शीघ्र कर दें दूर मिलकर, हिंद की सारी व्यथाएँ
प्रेरणा देती रहें
, हमको शहीदों
की कथाएँ ||
-जनकवि स्व.कोदूराम “दलित”
बहुत ही उद्देश्य पूर्ण राष्ट्रीयता का अलख जगाती इस रचना को नमन
ReplyDeleteदेश प्रेम के गीत ला, गाइस हिन्दुस्तान
ReplyDeleteबने बताए गा दलित, छंद राग के ज्ञान।