Sunday, November 4, 2012

छत्तीसगढ़ वंदना


जनकवि-स्व.कोदूराम ‘दलित’
बन्दौं छत्तीसगढ़ शुचिधामा | परम मनोहर  सुखद ललामा ||
 जहाँ सिहावादिक गिरिमाला | महानदी जहँ बहति विशाला ||
             मनमोहन  वन  उपवन अहई | शीतल - मंद पवन तहँ  बहई ||
जहँ तीरथ  राजिम अतिपावन | शवरी नारायण मन भावन ||
             अति  उर्वरा   भूमि  जहँ  केरी  | लौहादिक जहँ खान घनेरी ||
उपजत फल अरु विविध अनाजू | हरषित लखि अति मनुज समाजू ||
              बन्दौं छत्तीसगढ़ के ग्रामा | दायक अमित शांति – विश्रामा ||
                 बसत लोग जहँ भोले-भाले | मन के  उजले  तन के  काले ||
                 धारण  करते  एक लँगोटी |  जो करीब  आधा  गज  होती ||
मर मर  कर  दिन-रात कमाते | पर-हित में सर्वस्व लुटाते||

अति उदार अति सरल चित, सब मजदूर किसान |
उपजावत निज खेत में , विपुल कष्ट सहि धान ||

बन्दौं छत्तीसगढ़ की खेती | भूखों को जो भोजन देती ||
बन्दौं छत्तीसगढ़ की गैया | बन्दौं सरिता ताल तलैया ||
 बन्दौं छत्तीसगढ़ का पानी | महिमा जासुन जाइ बखानी ||
पान करत परदेशी भाई | मनवांछित सम्पदा कमाई ||
बन्दौं छत्तीसगढ़ की बासी | सुर दुरलभ अति सरस सुधा-सी ||
जो नित इसका पसिया पीवै | निश्चय ही सौ वर्षों जीवै ||
बन्दौं लाल गोंदली चटनी | करत सकल रोगन की छँटनी ||
बन्दौं छत्तीसगढ़ का खेंढ़ा | सुमधुर ज्यों मथुरा का पेड़ा ||
बन्दौं छत्तीसगढ़ की रोटी | कनकी कोंढ़ा की अति मोटी ||
 भाजी सँग जो नित प्रति खावत | सो अति बलशाली बन जावत ||

बन्दौं सबसे अधिक मैं, छत्तीसगढ़ की नार |
सीता –सावित्री सरिस , जिनके विमल विचार ||

बन्दौं छत्तीसगढ़ की धूरी | बन्दौं सबकी बनी मँजूरी |
बन्दौं नून तेल अरु लकड़ी |जगत चुटैया है जो पकड़ी ||
बड़ों-बड़ों को नाच नचावै | इनका पार न कोऊ पावै ||
बन्दौं नेता जन-हितकारी | सच्चरित्र-सज्जन-सुविचारी ||
बन्दौं छत्तीसगढ़ की भाषा | अति मीठी ज्यों दूध-बताशा ||
श्रोता का मन हरने वाली| सबको वश में करने वाली ||
बन्दौं छत्तीसगढ़िया गायन | सुआ-ददरिया परम सुहावन ||
शुद्ध भावना से जो गावत | महा मोक्ष निज मन मह पावत ||
बन्दौं करमा छत्तीसगढ़िया | बन्दौं गौरा गायन बढ़िया ||
बाँस गीत बन्दौं सुख दानी | बन्दौं सुन्दर कथा कहानी ||

छत्तीसगढ़िया नाच को, बन्दौं बारम्बार |
जिसका पा सकता नहीं, कभी सिनेमा पार ||
पढ़त-सुनत अरु गुनत जो, छत्तीसगढ़ गुणगान |
पावत मन महँ सो अकथ, सुख अरु शांति महान ||
*************************
*************************

Friday, September 28, 2012

कोदूराम ‘दलित’ : छत्तीसगढ़ी साहित्य के स्वर्णिम पृष्ठ



जनकवि स्व.कोदूराम “दलित

लेखक -    सुशील यदु

छत्तीसगढ़ की उर्वरा माटी ने एक से एक महापुरुष, नेता और कलाकार को जन्म दिया है | एक से बढ़कर एक प्रतिभाएँ आविमूर्त होती रही हैं लेकिन दुर्भाग्य है कि इन प्रतिभाओं को हमने समुचित महत्व नहीं दिया और इन्हें हम विस्मृत करते चले जा रहे हैं | यदि ऐसा ही रहा तो हमारे पास अगली पीढ़ी को देने के लिए कुछ भी शेष नहीं बचेगा | जो क्षेत्र अपनी संस्कृति, कला,साहित्य और इतिहास को विस्मृतकर देता है, वह सदैव पिछड़ा रहता है | छत्तीसगढ़ भी इन्हीं कारणों से पिछड़ा है |

छत्तीसगढ़ी साहित्य का इतिहास ज्यादा पुराना नहीं है | पिछले 70-75 वर्षों से छत्तीसगढ़ी साहित्य और काव्य को जिन साहित्यकारों ने विकसित किया उनमें लोचन प्रसाद पाण्डेय, सुंदरलाल शर्मा, शुकलाल प्रसाद पाण्डेय, द्वारिका प्रसाद तिवारी विप्र’, कोदूराम दलित’, हेमनाथ यदु, भगवती सेन, बद्रीविशाल परमानंद, हरि ठाकुर, श्याम लाल चतुर्वेदी आदि उल्लेखनीय हैं. ये साहित्यकार छत्तीसगढ़ी साहित्य की नींव के पत्थर हैं |  कोदूराम दलित और द्वारिका प्रसाद तिवारी विप्र ऐसे साहित्यकार थे जिन्होंने छत्तीसगढ़ी साहित्य को गहरा और समृद्ध किया | दुर्भाग्य से उनको समुचित प्रचार-प्रसार और प्रकाशन प्राप्त नहीं हो सका लेकिन उनकी रचनायें आज भी प्रासंगिक हैं |

कोदूराम दलितका जन्म 5 मार्च 1910 को ग्राम टिकरी,जिला दुर्ग में हुआ था | बचपन से इन्होंने निर्धनता भोगी | विषम परिस्थितियों में शिक्षा प्राप्त की | विशारद की परीक्षा उत्तीर्ण कर दुर्ग की प्राथमिक शाला में शिक्षक थे | प्रतिभा के बल पर उनकी पदोन्नति दुर्ग की प्राथमिक शाला में प्रधान पाठक के पद पर हुई | दलित जी जीविकोपार्जन के लिए शिक्षकीय कार्य करते थे,लेकिन साहित्य-सेवा उनका अभीष्ठ था | उनका समग्र व्यक्तित्व साहित्यिक था | वे पक्के गाँधीवादी धोती और टोपी पहनते थे | सरल, सहज और सीधे व्यक्तित्व के थे|

दलित मूलत: हास्य व्यंग्य के कवि थे | कवि सम्मेलन के मंचों में अपनी हास्य रचनायें सुना कर श्रोताओं को लोटपोट कर देते थे | कविताओं के प्रस्तुतीकरण का ढंग ठेठ देहाती लहजे में होता था | वे ग्रामीण जन-मानस में समा जाते थे | छत्तीसगढ़ी भाषा, शब्दों और मुहावरों पर उनका अद्भुत अधिकार था | उन्होंने हिंदी का लेखन भी किया लेकिन वे मूलत: छत्तीसगढ़ी के साहित्यकार रहे | दलित ने लगभग 13 कृतियों की रचना की, वे इस प्रकार हैं :- (1) सियानी गोठ (2) हमर देश (3) कनवा समधी (4) दू मितान (5) प्रकृति वर्णन (6) बाल कवि | गद्य कृतियाँ इस प्रकार हैं (7) अलहन (8) कथा-कहानी (9) प्रहसन (10) छत्तीसगढ़ी लोकोक्तियाँ (11) बाल निबंध (12) छत्तीसगढ़ी शब्द भंडार (13) कृष्ण जन्म( हिंदी पद्य)

इन कृतियों में से सियानी गोठ ही प्रकाशित हुई है | अन्य रचनाओं का प्रकाशन शेष है | दलित जी की कवितायें जहाँ एक ओर हास्य से परिपूर्ण हैं तो दूसरी ओर हमारी विसंगतियों पर करारा व्यंग्य करती हैं | हमारे दोहरे जीवन की पोल खोल कर रख देती हैं | एक ओर मानव कुत्ते-बिल्ली जैसे जानवरों को दुलारता-पुचकारता है ,दूसरी ओर समाज में अछूत समझे जाने वाले मनुष्यों को दुत्कारता है | उनसे भेद-भाव का व्यवहार करता है | समाज में व्याप्त ढोंग को चित्रित करते हुए कवि लिखते हैं  :

ढोंगी मन माला जपैं, लम्हा तिलक लगायँ

हरिजन ला छीययँ नहीं,चिंगरी मछरी खायँ

चिंगरी मछरी खायँ, दलित मन ला दुत्कारैं

कुकुर – बिलाई ला  चूमयँ – चाटयँ पुचकारैं

छोड़ - छाँड़ के गाँधी के  सुग्घर रसदा ला

भेद-भाव पनपायँ , जपयँ ढोंगी मन माला ||

 

दलित छत्तीसगढ़ी हास्य कविताओं के अद्वितीय कवि थे | सीधी और सहज बात को हास्य कविताओं में पिरो देनेका अपना अलग अंदाज था | खटारा साइकिल शीर्षक से कुण्डली में वे कहते हैं :

अरे खटारा साइकिल,निच्चट गये बुढ़ाय

बेचे बर जाववँ तो, कोन्हों नहीं बिसाय |

छत्तीसगढ़ का जन मानस पिछड़ा हुआ है | लोग भोलेभाले, अशिक्षित और उदार हैं | सरलता के कारण ठगी का शिकार होते हैं | किसान श्रम करते हैं किंतु उनके श्रम का शोषण धूर्त किस्म के व्यापारी करते हैं | कवि दलित कहते हैं कि छत्तीसगढ़ के लोग इन्हीं कारणों से पिछड़े हैं :

छत्तीसगढ़ पैदा करय , अड़बड़ चाँउर दार

हवय लोग मन इहाँ के, सिधवा अउ उदार

सिधवा अउ उदार, हवयँ दिन रात कमावयँ

दे दूसर ला भात , अपन मन बासी खावयँ

ठगथयँ बपुरा मन ला , बंचक मन अड़बड़

पिछड़े हवय अतेक, इही करन छत्तीसगढ़ ||

 

सन् 74-75 में दाऊ रामचंद देशमुख ने चंदैनी गोंदा के माध्यम से सांस्कृतिक चेतना का मंत्र फूँका | देशमुख ने अनेक कवियों के गीतों को प्रस्तुतीकरण में स्थान दिया |

दलित जी अपने जीवन भर छत्तीसगढ़ी भाषा- साहित्य सेवा में संलग्न रहे | उन्होंने लगभर 800 से भी अधिक कविताओं का सृजन किया | उनकी महत्वपूर्ण कृति आज भी अप्रकाशित है, जिससे हम उनकी कृतियों से अपरिचित हैं | उनकी अप्रकाशित कृति प्रकाश में आये तो छत्तीसगढ़ी की श्रीवृद्धि होगी |

[ 03 मार्च 1989 को नवभारत में प्रकाशित लेख | नवभारत से साभार ]

*आज छत्तीसगढ़ के जनकवि स्व.कोदूराम दलित की 45 वीं पुण्यतिथि*

Thursday, September 20, 2012

शत शत प्रणाम करुणा सागर.......


जनकवि स्व. कोदूराम “दलित”

 
(चित्र गूगल से साभार) 

हे ओम् रूप , गज वदन देव
हे  गणनायक हे  लम्बोदर  |
हे सिद्धि सदन ,कल्याण धाम
शत-शत प्रणाम करुणा सागर  ||

हे एकदंत   ,     हे दयावंत
विज्ञान पुंज ,  अनुपम  उदार  |
कर  दूर अविद्या  , अनाचार
भर दे जन-जन में सद् विचार ||

सुख शांति सम्पदा  कर प्रदान
त्रय ताप पाप  दुख दारिद हर  |
हे ओम् रूप ,  गज वदन देव
हे  गणनायक ,  हे  लम्बोदर  ||

भारत - स्वतंत्रता  रहे  अमर
गण-तंत्र  सफल  होवे  प्रभुवर  |
दे दिव्य ज्ञान, दे शक्ति प्रखर
हो  जायँ  विज्ञ सब नारी नर  ||

सुख - सुषमा लहरावे घर घर
यश  छा जावे  अवनी अम्बर  |
हे ओम् रूप ,  गजवदन देव
हे  गण नायक हे लम्बोदर  ||

हे सिद्धि सदन ,कल्याण धाम
शत-शत प्रणाम करुणा सागर ||

जनकवि स्व. कोदूराम “दलित”
हिंदी काव्य संचय