हिंदी काव्य संचय- जनकवि कोदूराम “दलित”
काला
काला अच्छा है , काले में है अच्छाई
दुनियाँवालों ! काले की मत करो बुराई.
सुनो ध्यान से काले
की गुणभरी कहानी
बड़ी चटपटी , बड़ी अटपटी , बड़ी सुहानी
प्रथम पूज्य है जो गणेश जग में जन-जन का
वह है काला मैल , मातु के तन का
गोरस काली गैया का अच्छा होता
है
पूजन काली मैया का अच्छा
होता है
चार किसम के बादल
आसमान में छाते
लेकिन काले बादल ही
जल बरसा जाते
काली कोयल की मधुर
वाणी मन हरती
अधिक अन्न पैदा करती है काली धरती
काले उड़दों से ही तो हम बड़े बनाते
स्वर्ग - लोक से जिन्हें पितरगण खाने आते
काली लैला की महिमा मजनू से
पूछो
काली रातों की गरिमा जुगनू से
पूछो
सकल करम केवल
काली रातों में होता
‘राम - राम’ रटता काले पिंजरे में
तोता
बनता हीरे जैसा
रतन, कोयला काला
काला लोहा है
मनुष्य का मित्र निराला
काली स्लेट ,पेनसिल काली, तख्ता काला
पाता है इंसान इसी से ज्ञान - उजाला
पाल रही परिवार अनगीनित
काली स्याही
कम है , इसकी जितनी भी की जाय बड़ाई
कर काला-बाजार कमा लो कस
कर पैसा
बैलों से बेहतर होता है काला
भैंसा
काला कोट कचहरी में
शुभ माना जाता
‘कानून-बाज’
इसी पर से पहचाना जाता
काले की
खूबियाँ विशेष जानना
चाहो
तो ‘चाणक्य-चरित्र’ एक बार पढ़ जाओ
काले कंचन बाल और
आँखें कजरारी
पाती है इनको , किस्मत वाली ही
नारी
बुढ़िया-बुढ़ऊ भी तो नित्य खिजाब लगाते
काले बाल बताओ किसको नहीं सुहाते
गोरे गालों पर काला तिल खूब दमकता
काले धब्बे वाला चम-चम चाँद
चमकता
काला ही था रचने
वाला पावन गीता
बिन खटपट के काले ने
गोरे को जीता
करो प्रणाम सदा काली
कमली वाले को
बुरा न कहना कभी
भूल कर भी काले को.
-जनकवि कोदूराम “दलित”