Saturday, September 17, 2011

राह उन्हीं की चलते जावें


– जनकवि स्व.कोदूराम ”दलित”

जो अपने सारे सुख तज कर
जन-हित करने में जुट जावें
दूर विषमतायें कर - कर के
जो  समाज में समता लावें
जन-जागरण ध्येय रख अपना
घर-घर जाकर अलख जगावें
उनके अनुगामी बन कर हम
राह उन्हीं की चलते जावें.

लहू-पसीना औंटा करके
खेतों में अनाज उपजावें
जो खदान-कारखानों के
कार्यों से न कभी घबरावें
“है आराम-हराम” समझकर
उत्पादन  को  खूब  बढ़ावें
वैसे  ही  श्रम-वीर बने हम
राह उन्हीं की चलते जावें.

कोटि-कोटि जन भारत के हम
उत्तम सैनिक - शिक्षा पावें
अपने  वीर  सैनिकों  जैसे
हम भी रण-कौशल दिखलावें
सीमा  पर   इतराने  वाले
दुश्मन को हम मजा चखावें
प्राण गँवाया हँसकर जिनने
राह उन्हीं की चलते जावें.

5 comments:

  1. इस उत्कृष्ट प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार के चर्चा मंच पर भी की गई है!
    यदि किसी रचनाधर्मी की पोस्ट या उसके लिंक की चर्चा कहीं पर की जा रही होती है, तो उस पत्रिका के व्यवस्थापक का यह कर्तव्य होता है कि वो उसको इस बारे में सूचित कर दे। आपको यह सूचना केवल इसी उद्देश्य से दी जा रही है! अधिक से अधिक लोग आपके ब्लॉग पर पहुँचेंगे तो चर्चा मंच का भी प्रयास सफल होगा।

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  2. bahut prerna dayak kavita padhvaane ke liye dhanyavaad.

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  3. सार्थक गीत.... सार्थक आवाहन...जनकवि को सादर नमन...
    सादर...

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  4. कोटि-कोटि जन भारत के हम
    उत्तम सैनिक - शिक्षा पावें
    अपने वीर सैनिकों जैसे
    हम भी रण-कौशल दिखलावें
    सीमा पर इतराने वाले
    दुश्मन को हम मजा चखावें
    प्राण गँवाया हँसकर जिनने
    राह उन्हीं की चलते जावें.

    सुंदर कविता से रूबरू करने के लिए कोटि कोटि धन्यबाद. सही सन्देश देती है यह कविता.

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