Wednesday, November 17, 2010

DHAN-LUWAI BY KODURAM ''DALIT''

''धान-लुवाई''

जनकवि स्व.कोदूराम'दलित' जन्म-शताब्दी  वर्ष पर विशेष  

चल संगवारी ! चल संगवारिन ,धान लुए ला जाई  ,
मातिस धान-लुवाई अड़बड़ ,मातिस धान-लुवाई.


पाकिस धान- अजान,भेजरी,गुरमटिया,बैकोनी,
कारी-बरई ,बुढ़िया-बांको,लुचाई,श्याम-सलोनी

धान के डोली पींयर-पींयर,दीखय जइसे सोना,
वो जग-पालनहार बिछाइस ,ये  सुनहरा बिछौना .


गंगाराम लोहार सबो हंसिया मन-ला फरगावय ,
टेंय - टुवाँ  के नंगत  दूज के चंदा जस चमकावय


दुलहिन धान लजाय मनेमन, गूनय मुड़ी नवा के,
आही हंसिया-राजा मोला लेगही आज बिहा के.


मंडल मन बनिहार तियारयं, बड़े बिहिनिया ले जाके,
चलो दादा हो !,चलो बाबा ! कहि-लेजयं मना-मना के.


कोन्हों धान डोहारे खातिर,लेजयं गाड़ी-गाड़ा,
फ़ोकट नहीं मिलयं तो देवयं , छै-छै रुपिया भाड़ा.


लकर-धकर सुत- उठके, माई-पीला बासी खावयं ,
फेर सूर , हँसिया, डोरी धर , धान लुए बर जावयं.


चंदा , बूंदा , चंपा , चैती , केजा , भूरी , लगनी,
दसरी,दसमत,दुखिया,धेला,पुनिया,पांचो,फगनी.


पाटी  पारे , माँग  संवारे , हँसिया खोंच कमर-माँ,
जायं खेत,  मोटियारी जम्मो,तारा दे के घर- माँ.


छन्नर-छन्नर पैरी बाजय ,खन्नर-खन्नर चूरी,
हांसत,कुलकत,मटकत रेंगय , बेलबेलहीन टूरी .


भांय- भांय बस्ती हर बोलय ,खेत-खार रुपसावय ,
देख उहाँ के गम्मत , घर के सुरता घलो न आवय.


कोन्हों रंग-रंग के कहिनी-कथा सुनायं  लहरिया,
कोन्हों मन करमा फटकारायं,कोन्हों गायं ददरिया.


भौजी के भाई हर नाचय ,पहिरय चिरहा-फरिया,
फेर बटोर करँगा-वरंगा ,वो चरिह्या,दू -चरिह्या.


राम-लखन के पल्टन जस,जब सब बनिहार झपावयं,
चर्र - चर्र, लू - लू के छिन - माँ कतको धान गिरावयं .


सांकुर-सांकुर पांत धरयं ,ते-ते मन तो अगुवावयं,
चाकर-चाकर,पांत धरयं ,जे-जे मन तें पछुवावयं.


काट-काट के धान   मड़ावयं, ओरी - ओरी  करपा,
देखब-माँ बड़ निक लागय ,सुन्दर चरपा के चरपा.


लकर-धकर बपुरी लैकोरी, समधिन हर घर जावय,
चुकुर - चुकुर  नान्हें - बाबू-ला, दुदू पिया के आवय.


ताते च तात ढीमरीन लावय ,  बेंचे  खातिर   मुर्रा,
लेवयं दे के धान सबो झिन , खावयं  उत्ता-धुर्रा.


दीदी लूवय धान खबा खब  ,भांटो बांधय भारा,
अउहा,झउहा बोहि-बोहि के ,लेजय भौजी ब्यारा.


अन्न-पूरना  देबी के  मंदिरेच   साहीं   ठौंका,
सुग्घर-सुग्घर खरही गाँजय ,रामबती के डौका.


रोज  टपाटप मोर डोकरी-दाई बीनय  सीला ,
कूटय-पीसय,राँधय-खावय,वो मुठिया अउ चीला.


धीरेबाने   रोज  उखानय ,  मोर  बाबा हर कांदी,
 क्लेश किसानन के कटही अब,जय-जय हो तोर गाँधी.


घर घुसवा बड़हर ,खेती के मरम भला का जानयं ,
कोन्हों  पेरयं  जांगर , कोन्हों   हलुवा-पूड़ी छानयं .


तइहा के ला बइहा लेगे,आइस नवा जमाना,
कहय विनोबा-चैतौ  दादू ! पाछू मत पछताना.


जउन कमाहै , तेकरेच खेती -बारी अब हो जाही,
अजगर साहीं खायं बइठ के,ते मन करम ठठाहीं .


जाड़-घाम,बरखा के दु:ख -सुख ,सहय  किसान बिचारा,
दाई - दादा असन   डारय  ,सबके   मुंह-माँ  चारा.


पहिनय,ओढय  ,कमरा-खुमरी ,चिरहा असन लिंगोटी,
पीयय पसिया-पेज,खाय कनकी-कोंढ़ा के रोटी.


जेकर लहू-पसीना लक्खों रंग-महल सिरजावय ,
सब-ला सुखी देख,जे छितका कुरिया-माँ सुख पावय .


अइसन धरमी चोला के गुन,जीयत भर हम गाबो,
सोला-आना सहकारी खेती-ला सफल बनाबो.


पावयं सब झन  अन्न-वस्त्र ,घर-कुरिया,रुपिया-पैसा,
सुखी होयं सब पालयं  घर-घर,गैया ,बैला,भैंसा.


रहय न पावय इहाँ करलई,रोना अउर कलपना.
सपनाए बस रहिस इहिच,बापू- हर सुन्दर सपना.  

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