Wednesday, January 25, 2012

गणतंत्र पर्व


– जनकवि स्व.कोदूराम ”दलित”
 
भारत के आज जन-जन  फूले नहीं समाते
भारत के आज कण-कण  फूले नहीं समाते
भारत का कोना-कोना  है  आज जगमगाया
गणतंत्र  पर्व  आया  ,  गणतंत्र  पर्व आया.

माँ हिंद के जलधि ने  पावन चरण पखारे
मंडरा  रहा  गगन में  घनश्याम रूप धारे
है आज चर-अचर में नव जागरण समाया
गणतंत्र  पर्व  आया , गणतंत्र  पर्व आया.

बरसा सुमन सलोने ,  तरुओं ने अर्चना की
ले स्वर्ण-थाल कर में, दिनकर ने वंदना की
जय-जय हो हिंद माँ की–कह चाँद मुस्कुराया
गणतंत्र  पर्व  आया  ,  गणतंत्र  पर्व आया.

मुख खोलकर सुहाना कलियाँ भी मुस्कुराई
रंगीन  पंख  ताने   तितली   ने  दी  बधाई
पीकर मधुर-मधुर रस  भौंरा यूँ गुनगुनाया
गणतंत्र  पर्व  आया गणतंत्र  पर्व आया.

तरू डाल पर  सुशोभित  है पंछियों की टोली
स्वाधीनता अमर हो – बुलबुल चहक के बोली
मनहर  मयूर  नाचा  , कोयल ने गान गाया
गणतंत्र  पर्व  आया   ,   गणतंत्र  पर्व आया.

क्या शान  से  हमारा  फहरा  रहा  तिरंगा
उन्नत  सुनील  नभ  में  लहरा रहा तिरंगा
जय-जय  निनाद  गूँजा  सर्वत्र  हर्ष  छाया
गणतंत्र  पर्व  आया   ,  गणतंत्र  पर्व आया.

बस आज एक होकर  हम  सब यही मनायें
सारा  जगत  सुखी  हो ,  सर्वत्र शांति छाये
दु:ख-द्वव्द्व-द्वेष का हो अविलम्ब ही सफाया
गणतंत्र  पर्व  आया  ,   गणतंत्र  पर्व आया.

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Tuesday, January 17, 2012

गरीबी ! तू न यहाँ से जा.....


जनकवि स्व.कोदूराम “दलित”

गरीबी ! तू न यहाँ से जा
एक बात मेरी सुन ,पगली
बैठ यहाँ पर आ,
गरीबी तू न यहाँ से जा.....

चली जायेगी तू यदि तो दीनों के दिन फिर जायेंगे
मजदूर-किसान सुखी बनकर गुलछर्रे खूब उड़ायेंगे
फिर कौन करेगा पूँजीपतियों ,की इतनी परवाह
गरीबी तू न यहाँ से जा.....

बेमौत मरेंगे बेचारे ये सेठ,महाजन ,जमीनदार
धुल जायेगी यह चमक दमक,ठंडा होगा सब कारबार
रक्षक बनकर, भक्षक मत बन, तू इन पर जुलुम न ढा
गरीबी तू न यहाँ से जा.....

सारे गरीब नंगे रहकर दु:ख पाते हों तो पाने दे
दाने-दाने के लिये तरस मर जाते हों,मर जाने दे
यदि मरे –जिये कोई तो इसमें तेरी गलती क्या
गरीबी तू न यहाँ से जा.....

यदि सुबह शाम कुछ लोग व्यर्थ चिल्लाते हों ,चिल्लाने दे
“हो पूँजीवाद विनाश” आदि के नारे इन्हें लगाने दे
है अपना ही अब राज-काज –तू गीत खुशी के गा
गरीबी तू न यहाँ से जा.....

यह अन्य देश नहीं, भारत है,समझाता हूँ मैं बार-बार
कर मौज यहीं रह करके तू, हिम्मत न हार, हिम्मत न हार
मैं नेक सलाह दे रहा हूँ, तू बिल्कुल मत घबरा
गरीबी तू न यहाँ से जा.....

केवल धनिकों को छोड़ यहाँ पर सभी पुजारी तेरे हैं
तू भी तो  कहते आई है “ ये मेरे हैं, ये मेरे हैं “
सदियों से जिनको अपनाया है, उन्हें न अब ठुकरा
गरीबी तू न यहाँ से जा.....

लाखों कुटियों के बीच खड़े आबाद रहें ये रंगमहल
आबाद रहें ये रंगरलियाँ , आबाद रहे यह चहल-पहल
तू जा के पूंजीपतियों पर, आफत नयी न ला
गरीबी तू न यहाँ से जा.....

ये धनिक और निर्धन तेरे जाने से सम हो जायेंगे
तब तो परमेश्वर भी केवल समदर्शी ही कहलायेंगे
फिर कौन कहेगा “दीनबंधु”, उनको तू बतला
गरीबी तू न यहाँ से जा.....

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