Wednesday, September 28, 2011

छत्तीसगढ़ के जन-कवि स्व.कोदूराम "दलित" की 44वीं पुण्य-तिथि पर विशेष... -अरुण कुमार निगम

     कवि कोदूराम 'दलित' का जन्म ५ मार्च १९१० को ग्राम टिकरी(अर्जुन्दा),जिला  दुर्ग  में हुआ . आपके पिता श्री राम भरोसा कृषक थे.आपका बचपन ग्रामीण परिवेश में खेतिहर मजदूरों के बीच बीता. आपने मिडिल स्कूल अर्जुन्दा में प्रारंभिक  शिक्षा प्राप्त की . तत्पश्चात नार्मल स्कूल रायपुर , नार्मल स्कूल बिलासपुर में शिक्षा ग्रहण की  .स्काउटिंग,चित्रकला ,साहित्य विशारद में आपको सदैव उच्च स्थान प्राप्त हुआ .१९३१ से १९६७ तक आर्य कन्या गुरुकुल,नगर पालिका परिषद् तथा शिक्षा विभाग दुर्ग की प्राथमिक  शालाओं  में आप अध्यापक  और  प्रधान  अध्यापक के रूप  में कार्यरत  रहे .

ग्राम अर्जुंदा में आशु कवि श्री पीला लाल चिनोरिया जी से आपको काव्य-प्रेरणा मिली. आपने १९२६ में कवितायेँ लिखना प्रारंभ की. आपकी रचनाएँ अनेक समाचार पत्रों
एवं साहित्यिक पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रही हैं."सियानी गोठ"(१९६७) तथा "बहुजन हिताय-बहुजन सुखाय"(२०००) आपकी प्रकाशित पुस्तकें हैं.आपकी कविताओं तथा लोक कथाओं का प्रसारण आकाशवाणी भोपाल ,इंदौर, नागपुर, रायपुर से अनेक बार हुआ है.मध्य प्रदेश शासन  , सूचना-प्रसारण विभाग , म.प्र.हिंदी साहित्य अधिवेशन ,विभिन्न साहित्यिक सम्मलेन ,स्कूल-कालेज के स्नेह सम्मलेन, किसान मेला, राष्ट्रीय पर्व ,गणेशोत्सव के कई मंचों पर अपने काव्य पाठ किया है. सिंहस्थ मेला (कुम्भ) उज्जैन में भारत शासन  द्वारा आयोजित कवि सम्मलेन में महाकौशल क्षेत्र से कवि के रूप में आप आमंत्रित किये गए. राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री के नगर आगमन पर अपने काव्यपाठ किया है.

आप राष्ट्र भाषा प्रचार समिति वर्धा
, इकाई -दुर्ग के सक्रिय सदस्य  रहे .दुर्ग जिला साहित्य समिति के उपमंत्री, छत्तीसगढ़ साहित्य के उपमंत्री, दुर्ग जिला हरिजन सेवक संघ के मंत्री, भारत सेवक समाज के सदस्य,सहकारी बैंक दुर्ग  के एक डायरेक्टर ,म्यु.कर्मचारी सभा नं.४६७, सहकारी बैंक के सरपंच, दुर्ग नगर प्राथमिक शिक्षक संघ के कार्यकारिणी सदस्यशिक्षक नगर समिति के सदस्य जैसे विभिन्न पदों पर सक्रिय रहते हुए आपने अपने बहु आयामी व्यक्तित्व से राष्ट्र एवं समाज के उत्थान के लिए सदैव कार्य किया है.

आपका हिंदी और छत्तीसगढ़ी साहित्य में गद्य और पद्य दोनों पर सामान अधिकार
रहा है. साहित्य की सभी विधाओं यथा कविता, गीत, कहानी ,निबंध, एकांकी, प्रहसन, बाल-पहेली, बाल-गीत, क्रिया-गीत    में आपने रचनाएँ की है. आप क्षेत्र विशेष में बंधे नहीं रहे. सारी सृष्टि ही आपकी विषय-वस्तु रही है. आपकी रचनाएँ आज भी प्रासंगिक हैं. आपके काव्य ने  उस  युग  में जन्म लिया  जब  देश  आजादी  के लिए संघर्षरत  था .आप समय की साँसों की धड़कन को पहचानते थे .  अतः आपकी रचनाओं में देश-प्रेम ,त्याग, जन-जागरण, राष्ट्रीयता की भावनाएं युग अनुरूप हैं.आपके साहित्य में नीतिपरकता,समाज सुधार की भावना ,मानवतावादी, समन्वयवादी तथा प्रगतिवादी दृष्टिकोण सहज ही परिलक्षित होता है.

हास्य-व्यंग्य आपके काव्य का मूल स्वर है जो शिष्ट और प्रभावशाली है. आपने रचनाओं में मानव का शोषण करने वाली परम्पराओं का विरोध कर
आधुनिक, वैज्ञानिक, समाजवादी और प्रगतिशील  दृष्टिकोण से दलित और शोषित वर्ग का प्रतिनिधित्व किया है. आपका नीति-काव्य तथा बाल-साहित्य  एक आदर्श ,कर्मठ  और सुसंस्कृत  पीढ़ी के निर्माण  के लिए आज भी प्रासंगिक है.

कवि दलित की दृष्टि में कला का आदर्श
  'व्यवहार विदेन होकर  'लोक-व्यवहार उद्दीपनार्थम' था. हिंदी और छत्तीसगढ़ी दोनों ही रचनाओं  में भाषा परिष्कृत, परिमार्जित, साहित्यिक और व्याकरण सम्मत है. आपका शब्द-चयन असाधारण है. आपके प्रकृति-चित्रण में भाषा में चित्रोपमता,ध्वन्यात्मकता के साथ नाद-सौन्दर्य के दर्शन होते हैं. इनमें शब्दमय चित्रों का विलक्षण प्रयोग हुआ है. आपने नए युग में भी तुकांत और गेय छंदों को अपनाया है. भाषा और उच्चारण पर आपका अद्भुत अधिकार रहा है.कवि श्री कोदूराम "दलित" का निधन २८ सितम्बर १९६७ को हुआ.





 
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Friday, September 23, 2011

गो - वध बंद करो


– जनकवि स्व.कोदूराम ”दलित”

गो-वध बंद करो जल्दी अब, गो-वध बंद करो
भाई ! इस स्वतंत्र भारत में, गो-वध बंद करो.

महापुरुष उस बाल कृष्ण का, याद करो तुम गोचारण
नाम पड़ा गोपाल कृष्ण का, याद करो तुम किस कारण
माखन-चोर उसे कहते हो, याद करो तुम किस कारण
जग-सिर-मौर उसे कहते हो, याद करो तुम किस कारण.

मान रहे  हो  देव तुल्य, उससे तो तनिक डरो
गो-वध बंद करो जल्दी अब, गो-वध बंद करो.

समझाया ऋषि दयानंद ने, गो-वध भारी पातक है
समझाया बापू ने गो-वध, राम राज्य का घातक है
सब जीवों को स्वतंत्रता से, जीने का पूरा हक है
नर-पिशाच अब उनकी निर्मम हत्या करते नाहक है.

सत्य-अहिंसा का अब तो, जन-जन में भाव भरो
गो-वध बंद करो जल्दी अब, गो-वध बंद करो.

जिस माता के बैलों द्वारा,अन्न-वस्त्र तुम पाते हो
जिसके दही-दूध-मक्खन से, बलशाली बन जाते हो
जिसके बल पर रंगरलियाँ करते हो,मौज उड़ाते हो
अरे ! उसी माता की गर्दन पर तुम छुरी चलाते हो.

गो-हत्यारों ! चुल्लू भर पानी में तुम डूब मरो
गो-वध बंद करो जल्दी अब, गो-वध बंद करो.

बहती थी जिस पुण्य भूमि पर, दही-दूध की सरितायें
आज वहीं निधड़क कटती है, दीन-हीन लाखों गायें
कटता है कठोर दिल भी, सुन उनकी दर्द भरी आहें
आज हमारी अपनी यह , सरकार जरा कुछ शरमाये.

पुण्य-शिखर पर चढ़ो, पाप के खंदक में न गिरो
गो-वध बंद करो जल्दी अब, गो-वध बंद करो.

आज यहाँ के शासक, निष्ठुर म्लेच्छ यवन क्रिस्तान नहीं
आज यहाँ पर किसी और की, सत्ता नहीं - विधान नहीं
आज यहाँ  सब कुछ है अपना,पर गौ का कल्याण नहीं
गो-वध रोके कौन ! तनिक, इस ओर किसी का ध्यान नहीं

गो-रक्षा, गो - सेवा कर , भारत का कष्ट हरो
गो-वध बंद करो जल्दी अब, गो-वध बंद करो.

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Wednesday, September 21, 2011

रहे न कोई भूखा – नंगा


– जनकवि स्व.कोदूराम ”दलित”

पराधीन रहकर सरकस का
शेर नित्य खाता है कोड़े
पराधीन रहकर बेचारे
बोझा ढोते हाथी-घोड़े.

माता – पिता छुड़ा, पिंजरे में
रखा गया नन्हा –सा तोता
वह स्वतंत्र उड़ते तोतों को
देख सदा मन ही मन रोता.

चाहे पशु हो, चाहे पंछी
परवशता कब , किसको भायी
कहने का मतलब यह कि
परवशताहोती दुख:दायी.

ऐसी दुख:दायी परवशता
मानव को कैसे भायेगी ?
औरों की दासता किसी को
राहत कैसे पहुँचायेगी ?

जो गुलामहैं, उन लोगों से
उनके दुख: की बातें पूछो
हैं जो आजाद मुल्क के
उनके सुख की बातें पूछो.

कहा सयानों ने सच ही है
आजादी से जीना अच्छा
किंतु गुलामी में जिंदा,
रहने से मर जाना है अच्छा .

रह करके गोरों की परवशता में
हम क्या-क्या न खो चुके
पर पंद्रह अगस्त सन सैंतालीस को
हम आजाद हो चुके.

यह सब अपने अमर शहीदों के
भारी जप-तप का फल है.
मिलकर रहें, देश पनपावें
तब तो फिर भविष्य उज्जवल है.

आजादी पर आँच न आवे
लहर-लहर लहराय तिरंगा
हम संकल्प आज लेवें कि
रहे न कोई भूखा – नंगा.

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Tuesday, September 20, 2011

श्रम का सूरज (छंद)


– जनकवि स्व.कोदूराम ”दलित”

श्रम का सूरज उगा, बीती विकराल रात,
भागा घोर तम, भोर हो गया सुहाना है.
आलस को त्याग–अब जाग रे श्रमिक, तुझे
नये सिरे से नया भारत सिरजाना है.
तेरे बल- पौरुष की होनी है परीक्षा अब
विकट कमाल तुझे करके दिखाना है.
आया है सृजन-काल, जाग रे सृजनहार,
जाग कर्मवीर, जागा सकल जमाना है.

फावड़ा-कुदाल, घन-सब्बल सम्हाल, उठ
निरमाण-कारी, तुझे जंग जीत आना है.
फोड़ दे पहाड़, कर पाषाणों को चूर-चूर
खींच ले खनिज, माँग रहा कारखाना है.
रोक सरिता का जल, प्यासी धरती को पिला
इंद्र का बगीचा तुझे यहीं पै लगाना है.
ऊसर मरू-भूमियों का सीना चीर ! तुझे
अन्न उपजाना है भूखों को खिलाना है.

जाग रे भगीरथ- किसान, धरती के लाल,
आज तुझे ऋण मातृ भूमि का चुकाना है.
आराम-हरामवाले मंत्र को न भूल,तुझे
आजादी की गंगा’ , घर-घर पहुँचाना है.
सहकारिता से काम करने का वक्त आया
कदम मिला के अब चलना – चलाना है.
मिल जुल कर उत्पादन बढ़ाना  है
एक-एक दाना बाँट-बाँट कर खाना है.

Saturday, September 17, 2011

राह उन्हीं की चलते जावें


– जनकवि स्व.कोदूराम ”दलित”

जो अपने सारे सुख तज कर
जन-हित करने में जुट जावें
दूर विषमतायें कर - कर के
जो  समाज में समता लावें
जन-जागरण ध्येय रख अपना
घर-घर जाकर अलख जगावें
उनके अनुगामी बन कर हम
राह उन्हीं की चलते जावें.

लहू-पसीना औंटा करके
खेतों में अनाज उपजावें
जो खदान-कारखानों के
कार्यों से न कभी घबरावें
“है आराम-हराम” समझकर
उत्पादन  को  खूब  बढ़ावें
वैसे  ही  श्रम-वीर बने हम
राह उन्हीं की चलते जावें.

कोटि-कोटि जन भारत के हम
उत्तम सैनिक - शिक्षा पावें
अपने  वीर  सैनिकों  जैसे
हम भी रण-कौशल दिखलावें
सीमा  पर   इतराने  वाले
दुश्मन को हम मजा चखावें
प्राण गँवाया हँसकर जिनने
राह उन्हीं की चलते जावें.

Wednesday, September 14, 2011

“जय हिंदी – जय देवनागरी”

– जनकवि स्व.कोदूराम ”दलित”

सरल, सुबोध, सरस, अति सुंदर, लगती प्यारी-प्यारी है
देवनागरी लिपि जिसकी, सारी लिपियों से न्यारी है.
ऋषि-प्रणीत संस्कृत भाषा, जिस भाषा की महतारी है
वह हिंदी भाषा भारत के लिये परम-हितकारी है.

सहती आई जो सदियों से, संकट भारी-भारी है
जीवित रही किंतु अब तक ,उस भाषा की बलिहारी है.
तुलसी, सूर, रहीम आदि ने की जिसकी रखवाली है
वह हिंदी भाषा भारत के लिये परम –हितकारी है.

कर न सकी जिसकी समता अरबी, उर्दू, हिंदुस्तानी
बनी सर्व-सम्मति से जो सारी भाषाओं की रानी
मंद पड़ गई जिसके आगे, अंगरेजी बेचारी है
वह हिंदी भाषा भारत के लिये परम –हितकारी है.

“जय हिंदी – जय देवनागरी”-कहती जनता सारी है
आज हिंद का बच्चा –बच्चा ,जिसका बना पुजारी है
भरी अनूठे रत्नों से, जिसकी साहित्य – पिटारी है
वह हिंदी भाषा भारत के लिये परम –हितकारी है.

Sunday, September 4, 2011

गुरु है सकल गुणों की खान –


-जनकवि स्व.कोदूराम ”दलित”

गुरु, पितु, मातु, सुजन,भगवान, 
ये पाँचों हैं पूज्य महान
गुरु  का  है  सर्वोच्च  स्थान , 
गुरु है सकल गुणों की खान.


कर अज्ञान तिमिर का नाश, 
दिखलाता यह ज्ञान-प्रकाश
रखता  गुरु  को  सदा  प्रसन्न , 
बनता  वही  देश सम्पन्न.


कबिरा, तुलसी, संत-गुसाईं, 
सबने गुरु की महिमा गाई
बड़ा  चतुर  है यह कारीगर , 
गढ़ता गाँधी और जवाहर.


आया पावन पाँच-सितम्बर ,
श्रद्धापूर्वक हम सब मिलकर
गुरु की महिमा गावें आज , 
“ शिक्षक-दिवस ” मनावें आज.


एकलव्य – आरुणि की नाईं , 
गुरु के शिष्य बने हम भाई
देता  है   गुरु विद्या – दान , 
करें  सदा  इसका  सम्मान.


अन्न –वस्त्र –धन दें भरपूर , 
गुरु  के  कष्ट  करें  हम  दूर
मिल जुलकर हम शिष्य–सुजान ,
करें राष्ट्र का नवनिर्माण.

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